कोरोना महामारी के प्रकोप के चलते कई महीनों बाद अपने एक पुराने दोस्त से मुलाकात हुई। घर से बाहर जाना तो नहीं चाहता था, पर दोस्त ने बहुत आग्रह किया और इस बात पर बहुत ज़ोर दिया कि उनकी धर्मपत्नी दो दिन के लिये जरूरी काम के लिये मैके गयी है और उनकी अलमारी में रखी स्कॉच की बोतल सदा दे रही है। दोस्त की पुकार तो मैं अनसुना कर भी देता, पर स्कॉच की अवमानना करने की हिम्मत न थी। लिहाज़ा, गाड़ी निकाली और शाम को उनके घर पहुंच गया।
मित्र को देखा तो मेरे होश उड़ गए। चमचमाते सफेद कुर्ते में बैठे थे, केश काले, चेहरा फेयर एंड हैंडसम टाइप क्रीम से पुता हुआ चमक रहा था। स्कॉच की दो घूँट जाने के बाद दिमाग की जंज़ीरें खुलीं और मैंने पूछा-
ये क्या कर बैठे हो? इस उम्र में अब जवान बनोगे? दफ्तर में कोई नई महिला ने जॉइन किया है क्या?
ज़रा चिढ़ कर बोले- तुम रहे वही लम्पट के लम्पट! अबे इसे कहते हैं, सेल्फ लव। स्वप्रेम। खुद से प्यार करना।
मुझे हंसी आ गयी – माफ करना भाई, पर होस्टल के दिनों में सेल्फ लव का मतलब वो गतिविधि होती थी जो बिस्तर पर लेट कर मस्तराम पढ़ते हुए की जाती थी।
इस बार मित्र ने तल्ख़ निगाहों से घूरकर देखा। मैं भी डर गया कि अब और स्कॉच न मिलेगी। वो बोले-
तुम मोदी भक्त लोगों की यही समस्या है। हमेशा अनपढ़, गँवार, और फूहड़ ही रहोगे। अमा यार, कॉलेज से बाहर निकलो और थोड़े बड़े हो जाओ। थोड़ा इंटरनेट का उपयोग व्हाट्सअप के घटिया जोक्स और पोर्न देखने मे कम करो और थोड़ा देखो की दुनिया कहाँ से कहाँ पहुँच चुकी है।
मित्र हमारे लिबरल हैं और अक्सर समाज सुधार और नारी उत्थान की बातें किया करते हैं। सरकार में आला अफसर हैं और अपनी लिबरल विचारधारा और रिश्वत के पैसों से दी शानदार पार्टियों के बल पर कई सेलेब्रिटीज़ से अंतरंग संबंध बना चुके हैं। अतः उनकी बात पे गौर देना ज़रूरी था।
अगले दो दिन तक मैंने पोर्न छोड़ कर इंटरनेट पर रिसर्च किया, और खासकर उस आधुनिक नालंदा विश्वविद्यालय जिसका नाम ट्विटर है पे गहन अध्ययन किया कि आखिर ये स्वप्रेम या सेल्फ लव है क्या बला। मेरे उस अनुसंधान रूपी तपस्या का फल आपके सम्मुख उपस्थित है।
कबीर और तुलसीदास जैसे पुराने महापुरुष दूसरों को प्रेम करने का ज्ञान बांटते थे। पर ये बातें समय के साथ घिस चुकी हैं। अब ज़माना स्वप्रेम का है। यानी दूसरों से नहीं, खुद से प्रेम करो। दूसरों से प्रेम करना वैसे भी आज की दुनिया में आत्मघाती कदम है। अब आप पृथ्वीराज चव्हाण बनके संयोगिता से प्यार करोगे तो पता चलेगा कि आपकी संयोगिता आपको अंगूठा दिखा कर जयचंद के साथ भाग गई, क्योंकि जयचंद जैसे समझदार आदमी में उसको अपना फ्यूचर नज़र आया। आप तो पृथ्वीराज हैं, जो अपने दुश्मन से भी इतना प्रेम करते हैं की उसको बार-बार माफ कर देते हैं और अंत में उस दुश्मन के हाथों ही मारे जाओगे। जबकि जयचंद स्वप्रेमी है जिसे सिर्फ अपना फ़ायदा दिखता है और उसके साथ रहने वाली महिला का फ्यूचर भी सिक्योर्ड है।
ट्विटर और फेसबुक का अध्ययन करने से मुझे समझ आ गया है कि आधुनिक महिला स्वप्रेम में पुरुषों से कहीं आगे निकल चुकी है। अधिकांश तो स्वयं से इतनी अभिभूत हैं कि दिन में नमाज़ की तरह पूरे पाँच बार विभिन्न मनमोहक मुद्राओं में अपने सेल्फी चित्र पोस्ट करती हैं, और सुबह नाश्ते से लेकर रात के खाने तक का सचित्र वर्णन अपने पाठकों तक पहुंचाती हैं। आज की शकुंतला को अपने दुष्यंत से केवल इतनी अपेक्षा है कि वो शकुंतला की पिक्स को लाइक कर दे और नाइस डीपी का कमेंट डाल दे – प्रेम तो वो स्वयं से ही इतना कर लेती है कि किसी और के प्रेम की उसके दिल में जगह ही नही होती।
हालांकि मध्यवय पुरुष भी स्वप्रेम में अब आधुनिक महिला को टक्कर देने लगे हैं। वैसे भी इस उम्र के पुरुषों में और महिलाओं में कोई विशेष फर्क नहीं होता। ये पुरुष अक्सर किट्टी पार्टियों में मिलते हैं जहाँ ये साथ बैठकर जलपान करते हैं तथा पूरी दुनिया में मीन-मेख निकालते हैं – फिर चाहे वो भारतीय क्रिकेट टीम हो या फिर अमरीका के राष्ट्रपति। विषय इनकी विशेषज्ञता से जितना दूर होता है, ये उसमें उतने ही पारंगत होते हैं। ये पुरूष पूरे विश्व के सास होते हैं। महिलाओं के अन्य गुणों की तरह अब इन पुरुषों ने स्वप्रेम का गुण भी अपना लिया है। मुँह अंधेरे ये अलार्म लगा कर पूरे घर की नींद उजाड़कर हिंदुस्तान की सड़कों और पार्कों पर भागने निकलते हैं (मुर्गे आजकल इनको भागता देख कर ही जानते हैं कि बाँग देने का वक़्त हो चला है)। पूरी पृथ्वी का चक्कर लगा कर ये तुरंत अपनी सोशल मीडिया पर पसीने भरी सेल्फी अपडेट करते हैं। हैशटैग हेल्थी लाइफ, हैशटैग सेल्फ लव।
मध्यवय पुरुषों में सेल्फ लव के प्रोग्राम के अंतर्गत कुछ ऐसी गतिविधियों का फ़ैशन भी है जिसे ये लोग “हैशटैग एक्सप्लोरिंग माय पैशन्स” के नाम से संबोधित करते हैं। अक्सर होता ये है कि पहले ये अपनी बीवी को हीरे का कोई सेट दिलाते हैं ताकि उसकी चमक में वो थोड़े समय के लिए अंधी हो जाये और ये झटपट जाकर पास वाले मॉल से तोप सा खूँखार दिखने वाला DSLR कैमरा ले आते हैं। उसके बाद तो साहब घर की मुंडेर पे बैठी कबूतरी से लेकर, अमेज़न के घने जंगल में अंधेरी गुफ़ा में उल्टे लटके चमगादड़ की तस्वीर तक ये धड़ाधड़ अपने फेसबुक एकाउंट पे पोस्ट दे मारते हैं। पता नहीं क्यों, बाघों से इन्हें विशेष प्रेम होता है। बाघों से तो ये पुरूष इतनी तत्परता से चेंट जाते हैं कि अगर बाघ लिख सकते तो अब तक सैंकड़ो पत्र मोदी जी को लिख चुके होते की अपने इन मिडिल-एजेड भाइयों से कहिये की कम से कम संभोग और सुसु हमें चैन से करने दिया करें।
सेल्फ लव के साथ ही ये आधुनिक स्त्री-पुरूष सेल्फ-इम्प्रूवमेंट यानी आत्म-सुधार पे भी विशेष ज़ोर देते हैं। वैसे मेरी तुच्छ बुद्धि में तो इन दोनों बातों में घोर विरोधाभास है। अगर आप स्वंय से सचमुच प्रेम करते हो तो फिर खुद को सुधारने की चेष्टा क्यों करते हो? प्रेम का तो मतलब ही यही है कि जो जैसा है उसे वैसा ही स्वीकारा जाए। तो फिर आप स्वयं से प्रेम करते हो या घृणा की हमेशा स्वयं सुधार में ही लगे रहते हो? पर अगर ये शंकाएँ मैं अपने लिबरल मित्र के सम्मुख व्यक्त करूँगा तो वे फिर मुझे महामूर्ख की उपाधि से सुशोभित कर देंगे और शायद फिर कभी स्कॉच भी नहीं पिलायेंगे। इसलिए, मैं इन सभी शंकाओं को भीतर ही समेट लेता हूँ। आज से मेरा भी सम्पूर्ण समर्थन स्वप्रेमियों को रहेगा।